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2022-10-03 10:57:34 +05:30

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— title: खोज author: AlpaViraam tags: poetry, hindi published: September 08, 2022 —

आत्मनिष्ठता सहित निर्णय लिए हजार, आत्म ही स्वयं ना था रह गया मन लाचार।

गलत अर्थ ने किया वश बाहरी सौंदर्य ने माया डाली, कुछ मूल खो रहा था मन जल ही भूल गया था माली।

लालची नेत्र सराह रहे थे अद्भुत मनोरम दृश्य रंगीन, जिज्ञासु मन ने नमक डाला पूर्व घाव हुआ संगीन।

यथार्थ सार्थक लगने लगा निर्णय लेंगे वे, प्रेक्षक का क्या ही मूल्य ज्ञान सदैव रहे।

आत्मबोध तो हुआ नहीं अबोध्य जगत का होगा बोध, सीमा निश्चित हुई नहीं काम प्रति क्या ही निरोध।

सीमा खोजे ना मिली खोज रही निष्फल, खोज लिया अर्ध संसार चित्त ना रहा अटल।

पराजित खोजी लौट आए अचंभित व धनहीन, कठोर एहसास हुआ फिर यह धन था बहुत करीब।

संतोष की लहरें चलने लगी ठीक हुए अधिकांश रोग, अंतिम जिज्ञासा ने उठाया प्रश्न इस धन का अब क्या है उपयोग।