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title: छवि
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author: AlpaViraam
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tags: poetry, hindi
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आधी रात पश्चात की कुछ स्वलिखित पंक्तियाँ।
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#+begin_export html
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#+end_export
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#+begin_verse
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स्वप्न मगन था मन मेरा
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निद्रा तोड़ जागे अवचेतन विचार
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स्वेद अधीन कमजोर तन काँप उठा
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क्या था यह असाधारण व्यवहार।
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जटिल चिंतन करने मजबूर हुआ मन
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समय निरंतर बढ़ रहा था
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व्याकुल था चित्त मेरा उस सुबह
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जिस सुबह अपनी छवि ढूंढ रहा था।
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भारी विचलित था मन मेरा
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काम में व्यस्त होने को तैयार
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आलस दोष जागृत हुआ
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अपूर्ण रह गया आवश्यक काम।
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महत्त्वहीन कार्यों से आकर्षित हो
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विपरीत दिशा में कूद रहा था
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सुस्त था मन मेरा उस दोपहर
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जिस दोपहर अपनी छवि ढूंढ रहा था।
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भीतर सो गया था मन मेरा
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कार्य प्रति मान चुका था हार
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व्यर्थ लगे अब तो जग सारा
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दार्शनिक दृष्टि ने किया प्रहार।
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बहानों अधीन ही सुखी था
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शून्यताग्रस्त संसार सराह रहा था
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क्लांतिकृत था मन मेरा उस संध्या
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जिस संध्या अपनी छवि ढूंढ रहा था।
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भविष्यवादी था मन मेरा
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कल निश्चित होगा दोगुना काम
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कल तो न देखा है मैंने
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वर्तमान नैतिकता पर उठा सवाल।
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कर्तव्यों से छिप रहा था
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कुशलता अपनी भूल रहा था
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कायर था मन मेरा उस रात
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जिस रात अपनी छवि ढूंढ रहा था।
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इतना बलहीन इतना तुच्छ
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क्यों अपनी छवि ढूंढ रहा था
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वस्तुनिष्ठ सत्य को त्याग कर
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क्यों निरर्थक में अर्थ ढूंढ रहा था।
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#+end_verse
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