From 363bcf86a867ef3a4c6943708f4c2f19ff3077c6 Mon Sep 17 00:00:00 2001 From: Amneesh Singh Date: Fri, 22 Jul 2022 06:57:09 +0530 Subject: [PATCH] =?UTF-8?q?posts:=20=E0=A4=9B=E0=A4=B5=E0=A4=BF?= MIME-Version: 1.0 Content-Type: text/plain; charset=UTF-8 Content-Transfer-Encoding: 8bit Signed-off-by: Amneesh Singh --- posts/2022-07-20-chhavi.org | 53 +++++++++++++++++++++++++++++++++++++ 1 file changed, 53 insertions(+) create mode 100644 posts/2022-07-20-chhavi.org diff --git a/posts/2022-07-20-chhavi.org b/posts/2022-07-20-chhavi.org new file mode 100644 index 0000000..095c919 --- /dev/null +++ b/posts/2022-07-20-chhavi.org @@ -0,0 +1,53 @@ +--- +title: छवि +author: AlpaViraam +tags: poetry, hindi +--- +आधी रात पश्चात की कुछ स्वलिखित पंक्तियाँ। +#+begin_export html + +#+end_export +----- +#+begin_verse +स्वप्न मगन था मन मेरा +निद्रा तोड़ जागे अवचेतन विचार +स्वेद अधीन कमजोर तन काँप उठा +क्या था यह असाधारण व्यवहार। +जटिल चिंतन करने मजबूर हुआ मन +समय निरंतर बढ़ रहा था +व्याकुल था चित्त मेरा उस सुबह +जिस सुबह अपनी छवि ढूंढ रहा था। + +भारी विचलित था मन मेरा +काम में व्यस्त होने को तैयार +आलस दोष जागृत हुआ +अपूर्ण रह गया आवश्यक काम। +महत्त्वहीन कार्यों से आकर्षित हो +विपरीत दिशा में कूद रहा था +सुस्त था मन मेरा उस दोपहर +जिस दोपहर अपनी छवि ढूंढ रहा था। + +भीतर सो गया था मन मेरा +कार्य प्रति मान चुका था हार +व्यर्थ लगे अब तो जग सारा +दार्शनिक दृष्टि ने किया प्रहार। +बहानों अधीन ही सुखी था +शून्यताग्रस्त संसार सराह रहा था +क्लांतिकृत था मन मेरा उस संध्या +जिस संध्या अपनी छवि ढूंढ रहा था। + +भविष्यवादी था मन मेरा +कल निश्चित होगा दोगुना काम +कल तो न देखा है मैंने +वर्तमान नैतिकता पर उठा सवाल। +कर्तव्यों से छिप रहा था +कुशलता अपनी भूल रहा था +कायर था मन मेरा उस रात +जिस रात अपनी छवि ढूंढ रहा था। + +इतना बलहीन इतना तुच्छ +क्यों अपनी छवि ढूंढ रहा था +वस्तुनिष्ठ सत्य को त्याग कर +क्यों निरर्थक में अर्थ ढूंढ रहा था। +#+end_verse +-----