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title: खोज
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author: AlpaViraam
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tags: poetry, hindi
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published: September 08, 2022
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#+begin_verse
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आत्मनिष्ठता सहित
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निर्णय लिए हजार,
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आत्म ही स्वयं ना था
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रह गया मन लाचार।
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गलत अर्थ ने किया वश
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बाहरी सौंदर्य ने माया डाली,
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कुछ मूल खो रहा था मन
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जल ही भूल गया था माली।
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#+end_verse
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#+begin_export html
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<!--more-->
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#+end_export
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#+begin_verse
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लालची नेत्र सराह रहे थे
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अद्भुत मनोरम दृश्य रंगीन,
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जिज्ञासु मन ने नमक डाला
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पूर्व घाव हुआ संगीन।
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यथार्थ सार्थक लगने लगा
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निर्णय लेंगे वे,
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प्रेक्षक का क्या ही मूल्य
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ज्ञान सदैव रहे।
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आत्मबोध तो हुआ नहीं
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अबोध्य जगत का होगा बोध,
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सीमा निश्चित हुई नहीं
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काम प्रति क्या ही निरोध।
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सीमा खोजे ना मिली
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खोज रही निष्फल,
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खोज लिया अर्ध संसार
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चित्त ना रहा अटल।
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पराजित खोजी लौट आए
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अचंभित व धनहीन,
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कठोर एहसास हुआ फिर यह
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धन था बहुत करीब।
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संतोष की लहरें चलने लगी
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ठीक हुए अधिकांश रोग,
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अंतिम जिज्ञासा ने उठाया प्रश्न
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इस धन का अब क्या है उपयोग।
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#+end_verse
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